बिन मौसम कृत्रिम वर्षा और उसका विज्ञान (Artificial Rain)


विज्ञान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है!! Artificial बारिश
        गुरुग्राम में गुरुवार को उस वक्त लोग हैरान रह गए, जब बिना बादल ही झमाझम बारिश होने लगी. उनके मन में एक ही सवाल था कि आखिर ये कैसे मुमकीन हो पाया. ऐसा होने को ‘आर्टिफिशियल रेन’ या ‘क्लाउड सीडिंग’ कहा जाता है.

        आर्टिफिशियल रेन पहले चीन, UAE, रूस जैसे देशों में देखी जाती थी. कुछ सालों से भारत में भी इसका देखा जा रहा है. कारण, शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण है. आर्टिफिशियल रेन को वायु प्रदूषण से निपटने के कारगर तरीके के रूप में देखा जाता है.

         आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम बारिश की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें आसमान में एक तय ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं. ये काम विमान, बैलून या रॉकेट से किया जा सकता है. इस प्रक्रिया को ही क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) का कहा जाता है.

इससे बादलों का पानी जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जम जाते हैं. कण इस तरह से बनते हैं जैसे वो कुदरती बर्फ हों. इसके बाद बारिश होती है.

कृत्रिम वर्षा के बारे में ज़रूरी बातें 

🔷कृत्रिम वर्षा कराने के लिए, एयरोप्लेन या हेलीकॉप्टर की मदद से बादलों पर ये पदार्थ डाले जाते हैं.

🔷इस प्रक्रिया को पूरा होने में करीब डेढ़ घंटा लगता है.

🔷कृत्रिम वर्षा की सफलता मौसम की खास कंडीशन पर निर्भर करती है.

🔷कृत्रिम वर्षा का इस्तेमाल प्रदूषण कम करने के लिए और बारिश न होने पर किया जाता है.

🔷कृत्रिम वर्षा की मदद से बारिश से फसलें खराब नहीं होतीं.

🔷कई इलाकों में बन रहे तूफ़ान को शांत करने के लिए भी कृत्रिम वर्षा कराई जाती है

🔷दुनिया के कई देशों में ज़रूरत पड़ने पर कृत्रिम वर्षा कराई जाती है

🔷कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में कृत्रिम वर्षा के लिए वर्षाधारी परियोजना शुरू की थी. 
उजाले कि तरफ

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