संगीत (Songs ) मन को मोह लें

संगीत ( Songs)

 जब भी मन और दिल बैचैन हो या खुशी का माहौल हो तो बस एक ही उपाय हैं, खुशी व्यक्त करने का संगीत. कितना भी उदास व्यक्ति क्युँ ना हो संगीत सुनकर हर कोई खो जाता हैं तो आइए जानते हैं । " संगीत " के इतिहास के बारे में ।

!! संगीत का मतलब क्या हैं !!

सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन , वादन व
नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा ।

गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसी की कहते हैं।

!! संगीत पद्धतियाँ !!
उत्तरी संगीत पद्धति
दक्षिणी संगीत पद्धति


अपने-अपने क्षेत्रीय परिधानों में सजी हुई भारतीय महिलाएँ भारत के विभिन्न भागों में प्रचलित वाद्य बजा रही हैं।

युद्ध , उत्सव और प्रार्थना या भजन के समय मानव गाने बजाने का उपयोग करता चला आया है। संसार में सभी जातियों में बाँसुरी इत्यादि फूँक के वाद्य (सुषिर), कुछ तार या ताँत के
वाद्य (तत), कुछ चमड़े से मढ़े हुए वाद्य (अवनद्ध या आनद्ध), कुछ ठोंककर बजाने के वाद्य (घन) मिलते हैं।
ऐसा जान पड़ता है कि भारत में भरत के समय तक गान को पहले केवल 'गीत' कहते थे। वाद्य में जहाँ गीत नहीं होता था, केवल दाड़ा, दिड़दिड़ जैसे शुष्क अक्षर होते थे, वहाँ उसे 'निर्गीत' या 'बहिर्गीत' कहते थे और नृत्त अथवा नृत्य की एक अलग कला थी। किंतु धीरे-धीरे गान, वाद्य और नृत्य तीनों का "संगीत" में अंतर्भाव हो गया - गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगतमुच्यते ।

भारत से बाहर अन्य देशों में केवल गीत और वाद्य को संगीत में गिनते हैं; नृत्य को एक भिन्न कला मानते हैं। भारत में भी नृत्य को संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया कि उसके साथ बराबर गीत या वाद्य अथवा दोनों रहते हैं। ऊपर लिखा जा चुका है कि स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय गीत और वाद्य दोनों में मिलते हैं, किंतु नृत्य में लय मात्र है, स्वर नहीं। हम संगीत के अंतर्गत केवल गीत और वाद्य की चर्चा करेंगे, क्योंकि संगीत केवल इसी अर्थ में अन्य देशों में भी व्यवहृत होता है।

!! इतिहास भी पुराना हैं !!

प्राच्य शास्त्रों में संगीत की उत्पत्ति को लेकर अनेक रोचक कथाएँ हैं। देवराज
इन्द्र की सभा में गायक, वादक व नर्तक हुआ करते थे। गन्धर्व गाते थे, अप्सराएँ नृत्य करती थीं और किन्नर वाद्य बजाते थे। गान्धर्व-कला में गीत सबसे प्रधान रहा है। आदि में गान था, वाद्य का निर्माण पीछे हुआ। गीत की प्रधानता रही। यही कारण है कि चाहे गीत हो, चाहे वाद्य सबका नाम संगीत पड़ गया। पीछे से नृत्य का भी इसमें अन्तर्भाव हो गया। संसार की जितनी आर्य भाषाएँ हैं उनमें संगीत शब्द अच्छे प्रकार से गाने के अर्थ में मिलता है।
'संगीत' शब्द ‘सम्+ग्र’ धातु से बना है। अन्य भाषाओं में ‘सं’ का ‘सिं’ हो गया है और ‘गै’ या ‘गा’ धातु (जिसका भी अर्थ गाना होता है) किसी न किसी रूप में इसी अर्थ में अन्य भाषाओं में भी वर्तमान है। ऐंग्लोसैक्सन में इसका रूपान्तर है ‘सिंगन’ (singan) जो आधुनिक
अंग्रेजी में ‘सिंग’ हो गया है, आइसलैंड की भाषा में इसका रूप है ‘सिग’ (singja), (केवल वर्ण विन्यास में अन्तर आ गया है,) डैनिश भाषा में है ‘सिंग (Synge), डच में है ‘त्सिंगन’ (tsingen), जर्मन में है ‘सिंगेन’ (singen)। अरबी में ‘गना’ शब्द है जो ‘गान’ से पूर्णतः मिलता है। सर्वप्रथम ‘ संगीतरत्नाकर’ ग्रन्थ में गायन, वादन और नृत्य के मेल को ही ‘संगीत’ कहा गया है। वस्तुतः ‘गीत’ शब्द में ‘सम्’ जोड़कर ‘संगीत’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘गान सहित’। नृत्य और वादन के साथ किया गया गान ‘संगीत’ है। शास्त्रों में संगीत को साधना भी माना गया है।

प्रामाणिक तौर पर देखें तो सबसे प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष, मूर्तियों, मुद्राओं व भित्तिचित्रों से जाहिर होता है कि हजारों वर्ष पूर्व लोग संगीत से परिचित थे। देव-देवी को संगीत का आदि प्रेरक सिर्फ हमारे ही देश में नहीं माना जाता, यूरोप में भी यह विश्वास रहा है। यूरोप, अरब और फारस में जो संगीत के लिए शब्द हैं उस पर ध्यान देने से इसका रहस्य प्रकट होता है। संगीत के लिए यूनानी भाषा में शब्द ‘मौसिकी’ (musique), लैटिन में ‘मुसिका’ (musica), फ्रांसीसी में ‘मुसीक’ (musique), पोर्तुगी में ‘मुसिका’ (musica), जर्मन में मूसिक’ (musik), अंग्रेजी में ‘म्यूजिक’ (music), इब्रानी, अरबी और फारसी में ‘मोसीकी’। इन सब शब्दों में साम्य है। ये सभी शब्द यूनानी भाषा के ‘म्यूज’(muse) शब्द से बने हैं। ‘म्यूज’ यूनानी परम्परा में काव्य और संगीत की देवी मानी गयी है। कोश में ‘म्यूज’ (muse) शब्द का अर्थ दिया है ‘दि इन्सपायरिंग गॉडेस ऑफ साँग’ अर्थात् ‘गान की प्रेरिका देवी’। यूनान की परम्परा में ‘म्यूज’ ‘ज्यौस’(zeus) की कन्या मानी गयी हैं। ज्यौस’ शब्द संस्कृत के ‘द्यौस्’ का ही रूपान्तर है जिसका अर्थ है ‘स्वर्ग’। ‘ज्यौस’ और ‘म्यूज’ की धारण
ब्रह्मा और सरस्वती से बिलकुल मिलती-जुलती है।


!! भारतीय संगीत !!

भारतीय संगीत का जन्म वेद के उच्चारण में देखा जा सकता है। संगीत का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ भरत मुनि का
नाट्यशास्त्र है। अन्य ग्रन्थ हैं: बृहद्देशी ,
दत्तिलम् , संगीतरत्नाकर ।

!! संगीत की शैलियाँ !!

हिंदुस्तानी संगीत

कर्नाटक संगीत

!!संगीत सुनने के लाभ !!

संगीत हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। और यह हमारी दैनिक जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। संगीत केवल
मनोरंजन के लिए ही नहीं सुना जाता है। वरन इसके कई सारे फायदे हैं। अब संगीत का प्रयोग वैज्ञानिक अनेक रोगों के उपचार के अंदर भी कर रहे हैं। अनेक वैज्ञानिक रिसर्च ने इस बात को ‌‌‌प्रमाणित किया है कि संगीत सुनने से कई सारे मानसिक फायदे होते हैं।

!!तनाव कम होता है !!

आज कल हर इंसान की जिंदगी दौड़ धूप से भरी रहती है। काम करते करते हम बुरी तरह से थक जाते हैं। जब संगीत सुनते हैं तो हमारा दिमाग रिलेक्स मोड के अंदर आता है। हमारे दिमाग मे नई एनर्जी का संचार होता है। व हम अच्छा फील करते हैं। संगीत हमारे मूड को बदल देता है।

 ‌‌‌संगीत दिमाग मे कार्टिसोल के स्तर को कम करता है। जिससे दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है।
दिमाग की नसों को आराम मिलता है

काम की वजह से दिमाग की नसे ज्यादा थक जाती हैं। संगीत सुनने से दिमाग को आराम मिलता है जहां पर कई बार दवाएं काम नहीं करती हैं ।वहां म्यूजिक थैरेपी काम करती है।

दर्द कम करने मे लाभप्रद

कुछ वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि जब इंसान किसी तरह के दर्द से पीड़ित होता है तो उसे उसका मन पसंद संगीत सुनाया जाना चाहिए । जिससे उसका ध्यान दर्द से हट जाता है। और उसे दर्द का एहसास कम होता है।

संगीत सुनने से दिमाग मे डोपामाइन का स्तर अधिक होता है। जो खुशी पैदा ‌‌‌करता है।

सांस से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए
अमेरिका वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत थेरैपी फेफड़ों के लिए काफी अच्छी रहती है। सांस से संबंधित रोगी को संगीत थैरेपी से ईलाज करने से फायदा मिलता है। लेकिन गम्भीर सांस के रोग इससे सही नहीं हो पाते हैं।

स्मृति ह्रास (मेमोरी लॉस) को कम करता है !

जिन लोगों की यादाश्त अच्छी नहीं होती है। उनको संगीत सुनना चाहिए । जिससे उनकी यादाश्त अच्छी हो जाती है। और दिमाग काफी बेहतर तरीके से काम करने लग जाता है।

हृदय के लिए भी संगीत अच्छा है !

संगीत सुनने से दिमाग के अंदर एंडोर्फिंस हार्मोन का स्त्राव होता है ।वैज्ञानिकों के अनुसार रोजाना 30 मिनट संगीत सुनने से दिल की क्षमता के अंदर बढ़ोतरी होती है। एक्सरसाइज के साथ संगीत सुनने से दिल की कार्यक्षमता के अंदर इजाफा होता है।
नींद अच्छी आती है

अच्छे संगीत सुनने से दिमाग के अंदर चल रहे बेकार के विचारों को विराम मिलता है। और रात के समय दिमाग पूरा खाली हो जाने से अच्छी नींद आती है। आमतौर पर जिन लोगों को नींद नहीं आती उनको सोने से पहले कुछ देर अच्छे गाने सुनने चाहिए।


संगीत सुनते रहों , गुनगुनाते रहों !


उजाले कि तरफ

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