मंदी( Inflation) क्या हैं ?
मंदी एक अर्थव्यवस्थात्मक शब्द है,
जो अर्थव्यवस्था में कमी या धीमी गति का अर्थ होता है। इसका सीधा असर उत्पादों और सेवाओं की मांग पर पड़ता है,
जो धीमी होने से कम उत्पादन और कम बिक्री की समस्याओं का सामना करते हैं।
मंदी का असर आमतौर पर आर्थिक व्यवस्थाओं, वित्तीय बाजारों और उत्पादक मुद्दों पर होता है।
इसे आमतौर पर आर्थिक मंदी या उत्पादक मंदी के रूप में वर्णित किया जाता है।
एक मंदी अवधि में, उत्पादकों को उत्पादन घटाने और कम कर देने की आवश्यकता होती है. ताकि मूल्यों को संतुलित रखा जा सके।
इस अवधि में, कई लोग बेरोजगार होते हैं या नौकरी खो देते हैं और उद्यमों और अर्थव्यवस्थाओं को अपने कर्जों का सामना करना पड़ता है।
कब - कब आई मंदी...
1929 कि महामंदी
1929 की महामंदी दुनिया इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक मंदियों में से एक थी। इस मंदी का मुख्य कारण था!
संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़ती अर्थव्यवस्था जो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी उसके ढांचे में उतार चढ़ाव की स्थिति थी।
1920 के दशक के अंत में और 1930 के दशक के शुरुआत में, संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते लोगों ने अधिक उत्पादन और उच्च स्तर की खरीदारी की। इससे अमेरिकी शेयर बाजार के मूल्यों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई।
1929 के अंत में, एक बार फिर से ढांचे में उतार चढ़ाव की स्थिति उत्पन्न हुई जिससे अमेरिकी शेयर बाजार में एक तेजी से गिरावट आई। इसके बाद, बहुत से लोगों ने अपने शेयर और अन्य संपत्तियों को बेच दिया, जिससे शेयर बाजार में गिरावट और विपणन मूल्यों में तेजी से गिरावट आई.
1997 कि एशियाई मंदी
1997 की एशियाई मंदी एक आर्थिक मंदी थी जो दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देशों को प्रभावित करती थी। इस मंदी का मुख्य कारण था उन देशों में अत्यधिक आर्थिक विकास जो कि उन्होंने उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में किया था जो उन्हें उनकी आर्थिक संरचना के बदलते परिदृश्य से अलग बनाने लगा।
इस मंदी का सबसे बड़ा प्रभाव तब हुआ जब थाई बात का मुद्दा उठा, जिसने एशियाई वित्तीय बाजारों में बड़ी हल चल मचा दी। एक समय आया जब देशों के वित्तीय सम्बंध अतिक्रमण से जूझ रहे थे जो इस मंदी को और अधिक खराब कर दिया। यह मंदी अंततः 1998 में बुरी तरह खत्म हुई, लेकिन इसने उन देशों को एक अधिक निष्पक्ष वित्तीय नीति की आवश्यकता बताई जो उन्हें अधिक सुरक्षित बनाती है।
2008 की वैश्विक मंदी.
2008 की वैश्विक मंदी दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं में एक भयानक गिरावट थी। इस मंदी का मुख्य कारण था अमेरिका में लोगों द्वारा असमंजस मुत्तबिक ऋण दिए जाने से हुए थे।
अमेरिकी बैंकों द्वारा सस्ते ऋण देने के कारण, लोगों द्वारा असमंजस मुत्तबिक ऋण लेने में बढ़त हुई थी। इससे लोग अपने घरों और अन्य संपत्तियों के लिए अधिक ऋण लेने लगे। इस तरह की ऋण व्यवस्था सस्ती थी और इससे संबंधित उच्च जोखिम वाले ऋण के मूल्य में भी एक बड़ी वृद्धि आई।
इस तरह के ऋण को "सबप्राइम लोन" या "निजी लोन" भी कहा जाता है। इन ऋणों का मूल्य बहुत ज्यादा हो गया था और अधिकतर लोग इनमें निवेश कर रहे थे।
इससे बैंकों के बीच ऋण के विनिमय में समस्याएं उत्पन्न हुई जिससे बैंकों की वित्तीय स्थिति में गिरावट आई। इसके अलावा अमेरिकी आवास वित्त कंपनियों का भंडाफोड़ भी हुआ जिससे इस मंदी का आई।